मेरी विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों को पढने का एक मात्र स्थान

Monday, 5 March 2012

होली के दोहे


कृष्ण खड़े हैं देखते ,राधा ही की बाट |
होली के मिस रंग की ,लगा रखी है हाट ||


होली के त्यौहार की ,बड़ी अजब हे बात |
आपस में लगते गले,जो लड़ते दिन रात ||


होली के हुडदंग में ,सुंदर होता खेल |
लट्ठमार दिन भर करें,और शाम को मेल ||


होली भर्ती है सदा,सब के मन में प्यार |
और कराता मेल भी ,होली का त्यौहार ||


होली खेलो प्रेम से ,होगा नहीं मलाल |
जिसको चाहो तुम रंगो,सब होते खुशहाल ||


रंगों से सब मुहं पुते,लगते एक समान |
कौन बड़ा,छोटा यहाँ,कहाँ रही पहचान ||


मिलकर होली खेलते,गोपी-ग्वाले-श्याम |
नन्द-यशोदा के यहाँ,मचा हुआ कुहराम ||


सतरंगी होली सदा ,दिल लेती है जीत |
दुश्मन भी यदि खेलते,बन जाते हैं मीत ||


होली का देखा यहाँ,हमने ऐसा रूप |
कैसा भी हो चेहरा,लगता एक स्वरुप ||


होली के त्यौहार में,खूब लगाएं रंग |
दुश्मन हो या मीत हो,खेलें सब के संग ||


Tuesday, 21 February 2012

हम भिखारी हैं





आप को देखा-लगा कोई हमारा मिल गया
यूँ लगा- जैसे हमें जीवन दुबारा मिल गया

हम भिखारी हैं मगर तुम हो बढ़े दाता प्रभो ,
तुम मिले दौलत भरा हमको पिटारा मिल गया

हम अजर हैं हम अमर हैं आत्मा मरती नहीं ,
सुन लगा गीता से हमको यह इशारा मिल गया

हर किसी के वास्ते चाहे नहीं होती कृपा ,
आँख अपनी खोलते दर्शन तुम्हारा मिल गया

हूर कोई देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगे ,
हूर के इस रूप में तेरा शरारा मिल गया

सब जगह मौजूद है पर आँख से दिखता नहीं ,
याद जैसे ही किया मोहन दुलारा मिल गया

आँच आ सकती नहीं उसको कभी संसार में ,
राम के बस नाम का जिसको सहारा मिल गया



Thursday, 2 February 2012

लड़ रहे नेता यहाँ संसद भवन में





मौत की तुमको निशानी दीखती है 
हर तरफ हमको जवानी दीखती है 

तुम घिरे हो यूँ सदा ग़म के भँवर में ,
पर हमें ग़म में रवानी दीखती है 

हर तरफ कांटे दिखें तुमको चमन में ,
बस  हमें  तो  बागबानी  दीखती  है 

दिल तुम्हारे  में  बसा है  खौफ़  कैसा  ,
खौफ़  में  हमको  खानी  दीखती  है 

माजरा सब सोच का है कुछ नहीं है ,
सोच  से  दुनिया सुहानी दीखती है 

सीख जाएँ प्यार करना गर वतन से ,
फिर वतन पर जां गवानी दीखती है 


क्या  नई   है  बेवफाई  की  कहानी,
रीति यह सदियों पुरानी दीखती है 

जो मिला मुझ को कभी सोचा नहीं था ,
यह  खुदा  की  मेहरबानी  दीखती है 

लड़ रहे नेता यहाँ संसद  भवन में  ,
देश  की  यह  राजधानी  दीखती  है 








Monday, 30 January 2012

जिंदगी फिर किस तरह सरगम रहे


सोच अपने ज़हन में हरदम रहे 
भ्रष्ट ही क्यों कुर्सियों पर जम रहे

हर मुसीबत का किया है सामना ,
हौंसले कब आदमी के कम रहे 

खा गई क्यों आग सारे शहर को,
ज़ुल्म कुदरत के नहीं क्यों थम रहे 

काट कर जंगल बना दीं बस्तियां ,
किस तरह कुदरत कहो हमदम रहे 

तुम किसी के वास्ते जीते नहीं,
जिंदगी फिर किस तरह सरगम रहे 

तू अगर आँसू किसी के पोंछ दे ,
तो जमाने में भला क्यों ग़म रहे 

ठोकरें खाई मगर संभले नहीं,
बस खुदा खुद को समझते हम रहे 

रैम्प पर लड़की घुमाई जा रही है




                                               
आग पानी में लगाई जा रही है 
इस तरह डोली सजाई जा रही है 

हो सके निर्माण महँगी होटलों का ,
दीन की बस्ती जलाई जा रही है 

रोज़ दौरे देश के,परदेस के कर ,
देश की दौलत उड़ाई जा रही है 

ले कमीशन तोप की, ताबूत की अब,
मुल्क की लुटिया डुबोई जा रही है 

खून प़ी कर खून के रिश्ते निभाते ,
रीत क्यों उल्टी चलाई जा रही है 

आज फैशन के बहाने अर्धनंगी ,
रैम्प पर लड़की घुमाई जा रही है 

मौत का भी डर नहीं है अब किसी को,
पाप से दौलत कमाई जा रही है 








Saturday, 28 January 2012

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में




मैं बहारों के लिए पैदा हुआ हूँ
इन नज़ारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मुफलिसी औ'बेबसी के इस शहर मैं
बे-सहारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मैं बना ठंडी हवा का एक झोंका,
इन पहाड़ों के लिए पैदा हुआ हूँ

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में
दो किनारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आसमां हूँ अंक में मेरे भरे इन
चाँद-तारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आग हूँ मैं भस्म करता हूँ अहम को
शिव विचारों के लिए पैदा हुआ हूँ

प्यार ममता है भरी मुझ में धरा-सी
मैं हजारों के लिए पैदा हुआ हूँ |