मेरी विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों को पढने का एक मात्र स्थान

Monday 30 January 2012

जिंदगी फिर किस तरह सरगम रहे


सोच अपने ज़हन में हरदम रहे 
भ्रष्ट ही क्यों कुर्सियों पर जम रहे

हर मुसीबत का किया है सामना ,
हौंसले कब आदमी के कम रहे 

खा गई क्यों आग सारे शहर को,
ज़ुल्म कुदरत के नहीं क्यों थम रहे 

काट कर जंगल बना दीं बस्तियां ,
किस तरह कुदरत कहो हमदम रहे 

तुम किसी के वास्ते जीते नहीं,
जिंदगी फिर किस तरह सरगम रहे 

तू अगर आँसू किसी के पोंछ दे ,
तो जमाने में भला क्यों ग़म रहे 

ठोकरें खाई मगर संभले नहीं,
बस खुदा खुद को समझते हम रहे 

रैम्प पर लड़की घुमाई जा रही है




                                               
आग पानी में लगाई जा रही है 
इस तरह डोली सजाई जा रही है 

हो सके निर्माण महँगी होटलों का ,
दीन की बस्ती जलाई जा रही है 

रोज़ दौरे देश के,परदेस के कर ,
देश की दौलत उड़ाई जा रही है 

ले कमीशन तोप की, ताबूत की अब,
मुल्क की लुटिया डुबोई जा रही है 

खून प़ी कर खून के रिश्ते निभाते ,
रीत क्यों उल्टी चलाई जा रही है 

आज फैशन के बहाने अर्धनंगी ,
रैम्प पर लड़की घुमाई जा रही है 

मौत का भी डर नहीं है अब किसी को,
पाप से दौलत कमाई जा रही है 








Saturday 28 January 2012

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में




मैं बहारों के लिए पैदा हुआ हूँ
इन नज़ारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मुफलिसी औ'बेबसी के इस शहर मैं
बे-सहारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मैं बना ठंडी हवा का एक झोंका,
इन पहाड़ों के लिए पैदा हुआ हूँ

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में
दो किनारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आसमां हूँ अंक में मेरे भरे इन
चाँद-तारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आग हूँ मैं भस्म करता हूँ अहम को
शिव विचारों के लिए पैदा हुआ हूँ

प्यार ममता है भरी मुझ में धरा-सी
मैं हजारों के लिए पैदा हुआ हूँ |