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Saturday 28 January 2012

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में




मैं बहारों के लिए पैदा हुआ हूँ
इन नज़ारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मुफलिसी औ'बेबसी के इस शहर मैं
बे-सहारों के लिए पैदा हुआ हूँ

मैं बना ठंडी हवा का एक झोंका,
इन पहाड़ों के लिए पैदा हुआ हूँ

बह रहा हूँ जल बना इन वादियों में
दो किनारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आसमां हूँ अंक में मेरे भरे इन
चाँद-तारों के लिए पैदा हुआ हूँ

आग हूँ मैं भस्म करता हूँ अहम को
शिव विचारों के लिए पैदा हुआ हूँ

प्यार ममता है भरी मुझ में धरा-सी
मैं हजारों के लिए पैदा हुआ हूँ |

4 comments:

  1. मुफलिसी औ'बेबसी के इस शहर मैं
    बे-सहारों के लिए पैदा हुआ हूँ

    वाह वाह वाह...बेजोड़ रचना है आपकी.
    ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.उम्मीद है आपकी रचनाएँ पढने का मौका लगातार मिलता रहेगा. मेरी शुभ कामनाएं स्वीकार करें

    नीरज

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    1. SHRIMAAN NEERJ GOSWAAMI JI ,NAMASKAR ,AAP KE PROTSAHAN KE LIYE DHANYAWAD .YH SAB AAP KI KRIPA SE SAMBHAV HUA HAI ,USKE LIYE MAIN AAP KA AABHARI RHUN GA .AAP KA APNA SHUBHCHINTAK ATAM PRAKASH .

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  2. आग हूँ मैं भस्म करता हूँ अहम को
    शिव विचारों के लिए पैदा हुआ हूँ

    प्यार ममता है भरी मुझ में धरा-सी
    मैं हजारों के लिए पैदा हुआ हूँ |

    बेहद खूबसूरत भावो को संजोया है गज़ल मे।

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